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Chhattisgarh Govt : ‘भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका या किसान किताब’ अब कहलायेगा “जनक”

प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को एक लाख रूपए का पुरस्कार दिए जाने की घोषणा

राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने आम जनता से 30 जून तक मंगवाया प्रस्ताव

रायपुर (CGVARTA). Chhattisgarh Govt “किसान किताब” प्रत्येक भू-स्वामी/भू-धारी कृषक के जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। कृषक के समस्त कृषकीय एवं वित्तीय कार्य की अधिकारिक पुष्टि का स्त्रोत यह छोटी सी पुस्तिका ही रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि यह कृषक की अस्मिता से सीधे संबंधित रही है।

Chhattisgarh Govt ने जनता से किया आह्वान

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा बलौदा बाजार-भाटापारा के विधानसभा क्षेत्र ग्राम कडार में आयोजित भेंट मुलाकात के दौरान “भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका या किसान किताब” की कृषक के जीवन में महत्ता को दृष्टिगत रखते हुये इसे एक नया सम्मान जनक नाम देने का आव्हान आम जनता से किया गया है और इसके नामकरण के लिए आम जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करने एवं प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को रूपये एक लाख का पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी है।

Chhattisgarh Govt को 30 जून तक कर सकते हैं आवेदन

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के अनुरूप नामकरण को अंतिम रूप देने के लिये प्रतिभागियों से सुझाव आमंत्रित किये जाने के लिए विभाग द्वारा एक ऑनलाईन वेब पोर्टल तैयार किया गया है, जिसका लिंक https://revenue.cg.nic.in/rinpustika है। इस पर प्रत्येक प्रतिभागी अपने मोबाईल नंबर को रजिस्टर कर अपनी एक प्रविष्टि 30 जून तक अपलोड कर सकते हैं।

Chhattisgarh Govt ने बताया मालगुजारी काल का रिकॉर्ड

राज्य में प्रत्येक किसान मालगुजारी के समय से परंपरागत रूप से अपने स्वामित्व की भूमि का लेखा-जोखा एक पुस्तिका के रूप में धारित करता रहा है। मालगुजारी काल में बैल जोड़ी के चित्र वाली एक लाल रंग की पुस्तिका, जिसे असली रैयतवारी रसीद बही” कहा जाता था, मालगुजारों के द्वारा कृषकों को दी जाती थी। कालांतर में इस पुस्तिका को भू-राजस्व सहिता में कानूनी रूप दिया गया।

1972-73 में दिया गया नया नाम

भू-राजस्व संहिता के प्रभावशील होने के पश्चात् वर्ष 1972-73 में इस पुस्तिका का नामकरण ‘भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका किया गया। “भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका में कृषक के द्वारा धारित विभिन्न धारणाधिकार की भूमि एवं उनके द्वारा भुगतान किये गये भू राजस्व, उनके द्वारा लिये गये अल्प एवं दीर्घकालीन ऋणों के विवरण का इन्द्राज किया जाता है। इसके अतिरिक्त भूमि के अंतरणों की प्रविष्टियों को भी इसमें दर्ज किया जाता रहा है।

2003 ने हुआ किसान किताब

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् वर्ष 2003 में ऋण पुस्तिका का नाम किसान किताब किया गया लेकिन इसके उद्देश्यों एवं उपयोग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। किसान किताब में किसान के द्वारा धारित समस्त भूमि वैसे ही प्रतिबिंबित होती है जैसे यह भू-अभिलेखों में है।

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